क्रूरता के आधार पर तलाक की याचिका मंजूर,,,,आवेदक सुरेन्द्र कुमार कोरी की ओर से,,,,,,एडवोकेट नोटरी मोतीराम कोशले ने पैरवी की।
भिलाई-3| देवबलौदा निवासी आवेदक सुरेन्द्र कुमार कोरी का विवाह रायपुर निवासी उसकी पत्नी के साथ दिनांक 30.04.2005 को हिन्दू रीति-रिवाज के साथ सम्पन्न हुआ था | आवेदक एवं अनावेदिका के विवाह के पश्चात् लगभग 25 दिन तक आपस में साथ-साथ रहे | दोनों के दाम्पत्य जीवन से एक पुत्र का जन्म हुआ| विवाह के लगभग एक-दो दिन तक अनावेदिका का व्यवहार ठीक-ठाक रहा उसके बाद से आवेदक के साथ अनावेदिका लड़ाई-झगड़ा, गाली-गलौज, मार-पिट करने लगी तथा तरह-तरह से प्रताड़ना व दहेज मांगने की झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी देती थी| इस सम्बन्ध में आवेदक ने पारिवारिक व सामाजिक स्तर पर अनावेदिका को कई बार समझाने का प्रयास किया, किन्तु अनावेदिका के व्यवहार में कोई बदलाव नही आया | दिनांक 26.05.2005 को अनावेदिका आवेदक से गाली-गलौज, मार-पिट कर अनावेदिका आवेदक के बच्चे को साथ ले गई और यह बोलकर गई की तू मेरे पिता के घर में हमेशा के लिए आकर रहना व यही काम करना नही तो आज के बाद तुम्हारे साथ कभी नही रहूंगी | इस प्रकार अनावेदिका, आवेदक को परित्याग कर दाम्पत्य जीवन का निर्वाह नही कर रही है लगभग 12 वर्षो से दोनों अलग-अलग रह रहे है | अनावेदिका ने आवेदक व उनके परिवार वालो के खिलाफ मार-पिट, दहेज मांगने की झूठी रिपोर्ट दर्ज करायी उक्त प्रकरण के विचारण उपरांत समक्ष न्यायालय श्रीमान न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी दुर्ग (छ.ग.) द्वारा दिनांक 16.09.2016 को शासन विरुद्ध सुरेन्द्र कोरी वगैरह प्रकरण क्रमांक 217/2 में दोष मुक्त करने का निर्णय पारित किया गया उसके पश्चात् आवेदक ने अपनी पत्नी के विरुद्ध धारा 13(1) (क) (ख) हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह विच्छेद की आज्ञप्ति पारित किये जाने का आवेदन प्रस्तुत किया गया है |
अनावेदिका द्वारा अपने पक्ष समर्थन में अभिवचन किया गया है कि आवेदक द्वारा पेश धारा 09 हिन्दू विवाह अधिनियम के आवेदन को निरस्त कर दिया गया था इसके पश्चात् आवेदक को न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी द्वारा आवेदक को धारा 323 भा.द.सं. के तहत दण्डित करने का आदेश पारित किया गया है जिससे स्पष्ट है की आवेदक द्वारा अनावेदिका के साथ न केवल मारपीट की वरन गाली-गलौज भी किया है | न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी द्वारा आवेदक को मारपीट का दोषी माना है तथा अनावेदिका द्वारा उपरोक्त निर्णय दिनांक 16.09.2016 को न्यायालय में चुनौती दी गई ऐसी स्थिति में स्पष्ट है की अनावेदिका द्वारा दहेज के लिए मारपीट की रिपोर्ट सही लिखवाई गयी थी | परन्तु साक्ष्य विशलेषण के उपरांत यदि न्यायालय द्वारा किसी भी प्रकार का अन्य अपराध पाते हुए दण्डित किया है तो अह धारा 498 के तहत है | परिणामस्वरूप दोषमुक्त होने का कथन गलत है | अनावेदिका द्वारा उपरोक्त आवेदन को माननीय सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में चुनौती दी गयी है जो वर्तमान में लंबित है आवेदक की क्रूरता के कारण अनावेदिका अपने बच्चे के साथ अलग निवास कर रही है | न्यायालय के आदेश दिनांक 12.06.2007 एवं 16.09.2016 के परिप्रेक्ष्य में यह उल्लेखनीय है की आवेदक चूंकि पिछले 12 वर्षो से बेरोजगार है तथा अनावेदिका के साथ मारपीट व क्रूरता करता रहा था | आवेदक पिछले 12 वर्षो से अपने पुत्र या पत्नी के लिए कोई भी ऐसा कार्य नही किया है जिससे खुश होकर वह स्वयं आवेदक के साथ निवास करने लगे | आवेदक एवं अनावेदिका के संसर्ग से एक पुत्र हर्ष आयु 12 वर्ष है जिसका लालन-पालन अनावेदिका द्वारा स्वयं किया जा रहा है | जिसमे कभी-भी अनावेदक किसी भी प्रकार से कोई सहायता या सहयोग नही किया है अत : आवेदक द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र अंतर्गत धारा 13(1) (क) (ख) हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 सव्यय निरस्त किया जाने का निवेदन किया गया है |
आवेदक के विद्वान न्यायमित्र एडवोकेट/नोटरी मोतीराम कोशले ने अपने तर्क में बताया कि अनावेदिका द्वारा आवेदक को बिना किसी वजह के दहेज प्रताड़ना के केस में फंसाने की धमकी देना क्रूरता के सामान है | जहां तक अभित्यजन का प्रशन है की आवेदक ने कथन किया है की दिनांक 26.05.2005 को अनावेदिका आवेदक के साथ लडाई-झगड़ा करके अपने बच्चे को साथ ले कर चली गयी | इस प्रकार अनावेदिका आवेदक का परित्याग कर दाम्पत्य जीवन का निर्वाह नही कर रही है | लगभग 12 वर्षो से दोनों अलग-अलग रह रहे है| ऊपर साक्ष्य विवेचना एवं अवलोकन के पश्चात् माननीय श्रद्धा शुक्ला शर्मा तृतीय अतिरिक्त, प्रधान न्यायाधीश, कुटुम्ब न्यायालय, दुर्ग (छ.ग.) ने आवेदक के आवेदन को स्वीकार कर विवाह विच्छेद की डिक्री प्रदाय करने का आदेश पारित किया है |